आरक्षण की ज़रूरत मूर्खों को है” — यह वाक्य सुनने में कठोर लगता है, लेकिन इसके पीछे छुपी सोच को समझना ज़रूरी है। यह कथन किसी जाति, वर्ग या समुदाय पर हमला नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था पर सवाल है जो वर्षों से योग्यता से ज़्यादा पहचान को प्राथमिकता देती आ रही है।
भारत जैसे देश में जहाँ प्रतिभा की कोई कमी नहीं, वहाँ अक्सर देखा जाता है कि मेहनती और काबिल लोग सिर्फ इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि वे किसी विशेष श्रेणी में नहीं आते। सवाल यह नहीं है कि आरक्षण आया क्यों, सवाल यह है कि क्या आज भी वही ज़रूरत बची है?
आरक्षण की शुरुआत क्यों हुई थी?
आरक्षण का उद्देश्य था —
सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को अवसर देना
सदियों की असमानता को संतुलित करना
शिक्षा और नौकरियों तक पहुँच आसान बनाना
यह उद्देश्य सही था। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब अस्थायी समाधान स्थायी सिस्टम बन जाता है।
आज की हकीकत
आज देश में ऐसे लोग भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं जो आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पूरी तरह सक्षम हैं। वहीं दूसरी तरफ, सामान्य वर्ग के गरीब और मेहनती छात्र सिर्फ इसलिए बाहर हो जाते हैं क्योंकि उनके पास “सर्टिफिकेट” नहीं है, बल्कि सिर्फ काबिलियत है।
यहीं से यह सवाल जन्म लेता है —
> क्या आरक्षण अब पिछड़ों के लिए है या सुविधा वालों के लिए?
मूर्खता कहाँ है?
“मूर्ख” यहाँ किसी व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि उस सोच के लिए कहा गया है जो:
मेहनत की जगह सहारे पर भरोसा करती है
योग्यता से डरती है
बराबरी की जगह विशेषाधिकार चाहती है
जो व्यक्ति अपनी पहचान के सहारे आगे बढ़ना चाहता है, न कि अपनी काबिलियत से — असली समस्या वहीं है।
कड़वा सवाल
अगर कोई इंसान 70 साल बाद भी बराबरी के नाम पर सहारा माँग रहा है,
तो सवाल सिस्टम पर नहीं, उस मानसिकता पर उठता है।
क्या योग्यता इतनी डरावनी हो गई है?
क्या मेहनत इतनी बेकार लगने लगी है?
मूर्ख कौन है?
मूर्ख वो नहीं जो गरीब है।
मूर्ख वो नहीं जो पिछड़ा है।
मूर्ख वो है
जो अपनी पहचान को ढाल बनाकर मुकाबले से भागता है।
जो चाहता है कि रास्ता छोटा हो, सिर्फ इसलिए क्योंकि नाम अलग है।
अब भी सच नहीं दिखता?
जब डॉक्टर सिर्फ कटऑफ से बनते हैं, काबिलियत से नहीं,
जब अफ़सर मेरिट से नहीं, श्रेणी से बनते हैं,
तो देश आगे नहीं बढ़ता — डूबता है।
समाधान क्या हो सकता है?
आरक्षण आर्थिक आधार पर हो
एक ही परिवार को पीढ़ी दर पीढ़ी लाभ न मिले
योग्यता और मेहनत को प्राथमिकता मिले
शिक्षा को इतना सशक्त बनाया जाए कि आरक्षण की ज़रूरत ही न पड़े
निष्कर्ष
आरक्षण बुरा नहीं है, लेकिन अंधा आरक्षण खतरनाक है।
देश को सहारे से नहीं, काबिल लोगों के कंधों पर आगे बढ़ना चाहिए।
क्योंकि आखिर में सवाल यही है —
> क्या हमें बराबरी चाहिए या सुविधा?
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Nice
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